शिरडी की पावन भूमि पर पाँव रखेगा जो भी कोई,तत्क्षण उसके मिट जायेगेँ, सभी अपाय हो जो भी कोई
समाधी की सीढी चढेगा जो मेरी ,मिटे दुःख दरिद्र और चिन्तायऐं सारी
गया छोड़ इस देह को फिर भी ,दौडूऊँगाँ निज भक्त के हेतु फिर भी
मनोकामना सिद्धियौ ये मेरी समाधी ,रखो इस पर विश्वास और दृढ बुद्धि
नित्य हूँ मैं जीवित यह है अक्षरशःसत्य, नित्य लो प्रजीती नित्य स्वानुभव
मेरी शरण में आकर कोई गया है खाली,ऐसा मुझे बता दो कोई अंक भी सवाली
भजेगा जो मुझको जिस भाव से ,आऊंगा मैं उसको उस भाव
तुम्हारा यह सब भार लूँगा ,नही इसमें संशय वचन सत्य मेरा
मिलेगी मदद यहाँ सबको ही जानो ,मिलेगा वही जिसको जो-जो भी मांगो
हो गया मेरा ही तन मन वचन से ऋणी, में हूँ उसका सदा सर्वदा ही~
कहे साई वो भी हुआ धन्य -धन्य ,हुआ जो अनन्य मुझ में अभिन्न
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